(1)🔥🔥आरती बाबा रामदेवजी की💥💥
👣पीछम धरा सुं मारा पीरजी पधारीया
घर अजमल अवतार लीयो ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हर री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣वीणा रे तंदूरो धणी रे नोबत बाजे
झालर री झणकार पड़े ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हर री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 धारत मिठाई हरी चढे रे चुरमा
धुपों की महकार पड़े ।
👣 लाछा सुगना बाई करे हर री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 गंगा यमुना बहे रे सरस्वती
रामदेव बाबा स्नान करे ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हरी आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 दूरां रे देशों रा बाबा आवे जातरु
दरगाहआगे बापजी ने नमन करे ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हरी री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 हरी शरणों में हरजी भाटी बोले
नवों रे खंडों मे निशान धुरें ।
👣लांछा सुगना बाई करे हरी री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
{ आरती 2 }
★जय अजमल लाला प्रभु, जय अजमल लाला ।
★भक्त काज कलयुग में लीनो अवतारा, जय अजमल लाला ।
★ अश्वन की अवसारी शोभीत , केशरीया जामा,जय अजमल लाला ।
★शीस तुर्रा हद शोभीत हाथ लीया भाला ,जय अजमल लाला ।
★डुब्त जहाज तीराई भैरव दैतव को मारा ,जय अजमल लाला ।
★कृष्णकला भयभजन राम रूणेचा वाला, जय अजमल लाला ।
★अंधन को प्रभु नेत्र देत है, सुख संपती माया ,जय अजमल लाला ।
★कानन कुंडल झील मील गल पुष्पनमाल ,जय अजमल लाला ।
★कोढी जय करूणा कर आवे, होंय दुखीत काया, जय अजमल लाला ।
★शरणागत प्रभु तोरी भक्तन सुन दाया ,जय अजमल लाला ।
★आरती रामदेव जी की नर नारी गावे ,जय अजमल लाला ।
★कटे पाप जन्म-जन्म के मोक्षा पद पावे ,जय अजमल लाला ।
★जय अजमल लाला प्रभु ,जय अजमल लाला ।
★भक्त काज कलयुग में लीनो अवतारा , जय अजमल लाला ।
(2)चालीसा बाबा रामदेव जी
🙏बाबा रामदेव चालीसा 1🙏
।। दोहा ।।
जय जय प्रभु रामदेव, नमो नमो हरबार ।
लाज राखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार ।।
दीन बन्धु किरपा करोए, मोर हरो संताप ।
स्वामी तीनों लोक केए हरो क्लेश, अरू पाप ।।
👣जय जय रामदेव जयकारी ।
👣तुम हो सुख सम्पत्ति के दाता ।
👣बाल रूप अजमल के धारा ।
👣दुखियों के तुम हो रखवारे ।
👣आपहि रामदेव प्रभु स्वामी ।
👣तुम हो भक्तों के भय हारी ।
👣जग में नाम तुम्हारा भारी ।
👣दु:ख भंजन है नाम तुम्हारा ।
👣सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी ।
👣कलियुग में प्रभु आप पधारे ।
👣तुम हो भक्त जनों के रक्षक ।
👣सोहे हाथ आपके भाला ।
👣आप सुशोभित अश्व सवारी ।
👣नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे ।
👣तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे ।
👣लीला अपरम्पार तुम्हारी ।
👣निर्बुद्धि भी विद्या पावे ।
👣पुत्र हीन सु सन्तति पावे ।
👣दुर्जन दुष्ट निकट नहिं आवें ।
👣जो कोई पुत्र हीन नर ध्यावै ।
👣तुमने डूबत नाव उबारी ।
👣पीरों को परचा तुम दीना ।
👣तुमने पुत्र दिया दलजी को ।
👣सुगना का दु:ख तुम हर लीना ।
👣जो कोई तुमको सुमिरन करते ।
👣जो कोई टेर लगाता तेरी ।
👣विविध रूप धर भैरव मारा ।
👣जो कोई शरण आपकी आवे ।
👣नयनहीन के तुम रखवारे ।
👣नित्य पढ़े चालीसा कोई ।
👣जो कोई भक्ति भाव से ध्याते
👣मैं भी सेवक हूँ प्रभु तेरा ।
👣जय जय हो प्रभू लीला तेरी ।
👣करता नन्द विनय प्रभु तेरी ।
👣विपदा हरो तुम आन हमारी ।।
👣भक्तजनों के भाग्य विधाता ।।
👣बनकर पुत्र सभी दु:ख हारा ।।
👣लागत आप उन्हीं को प्यारे ।।
👣घट घट के तुम अन्तरयामी ।।
👣मेरी भी सुध लो अवतारी ।।
👣भजते घर घर सब नर नारी ।।
👣जानत आज सकल संसारा ।।
👣तुम हो जग के अन्तरयामी ।।
👣अंश एक पर नाम है न्यारे ।।
👣पापी दुष्ट जनों के भक्षक ।।
👣गले में सोहे सुन्दर माला ।।
👣करो कृपा मुझा पर अवतारी ।।
👣पाप अविद्या सब दुख नाशे ।।
👣नित्य बसो प्रभु हिये हमारे ।।
👣सुख दाता भय भंजन हारी ।।
👣रोगी रोग बिना हो जावे ।।
👣सुयश ज्ञान करि मोद मनावे ।।
👣भूत पिशाच सभी डर जावें ।।
👣निश्चय ही नर व सुत पावैं ।।
👣मिसरी किया नमक को सारी ।।
👣नीर सरोवर खारा कीना ।।
👣ज्ञान दिया तुमने हरजी को ।।
👣पुत्र मरा सर जीवन कीना ।।
👣उनके हित पग आगे धरते ।।
👣करते आप तनिक ना देरी ।।
👣जांभा को परचा दे डाला ।।
👣मन इच्छा पूरण हो जावे ।।
👣कोढ़ी पुंगल के दु:ख टारे ।।
👣सुख सम्पत्ति वाके घर होई ।।
👣मन वांछित फल वो नर पाते ।।
👣काटो जनम मरण का फेरा ।।
👣पार करो तुम नैया मेरी ।।
👣करहु नाथ तुम मम उर डेरी ।।
।। दोहा ।।
भक्त समझ किरपा करी नाथ पधारे दौड़ ।
विनती है प्रभु आपसे नन्द करे कर जोड़ ।।
यह चालीसा नित्य उठ पाठ करे जो कोय ।
मन वांछित फल पाय वो सुख सम्पत्ति घर होय ।।
[🙏बाबा रामदेव चालीसा 2🙏]
🙏अजमल सुत रामदेव नामा,
जग में आए जीव तारण के कामा ।
🙏शीश तुरां गल मोतियन माला,
नीले की असवारी केसरिया जामा ।।
🙏आप प्रभु बोद्धित्वा दियो,
माघ कृष्णा शुभ दिन शनिवार ।
🙏कलियुग सम्वत् 2056,
चतुर्भुज रूप में, दिया ज्ञान का सार ।।
🙏जय श्री रामदेव अवतारी,
विपद हरो प्रभु आन हमारी ।।
🙏भावदा शुद दूज को आया,
अजमल जी से कौल निभाया ।।
🙏अजमल जी को परचो दियो,
जग में नाम अमर है कियो ।।
🙏द्वारका छोड़ मरूधर में आया,
भक्ता का है बन्द छुड़ाया ।।
🙏माता मैनादे की शंका मिटार्इ,
पल में दूध पे कला बरताई ।।
🙏कपड़ा को घोड़ो है उड़ायो,
दर्जी को है पर्चों दियो ।।
🙏तीजी कला यूं बरताई,
जग में शक्ति आप दिखाई ।।
🙏स्वारथिया को आप जिवाओ,
चौथी कला को यूं बरताओं ।।
🙏मिश्री को है नमक बनाया,
लखी बनजारा को पर्चों दिखाया ।।
🙏मन शुद्ध कर भक्ति बतलाई,
इन विध पांचु कला बरताई ।।
🙏मोहम्मद को है पर्चों दिन्हो,
लंगड़ा से अच्छा है किन्हो ।।
🙏विकट रूप धर भैरों मारा,
साधु रूप धर भक्त तारा ।।
🙏भैरों को थे नीचे दबाया,
जन-जन को सुखी कर दिया ।।
🙏बालीनाथ का बचन पुराया,
आप चतुर्भुज रूप दिखाया ।।
🙏पुगलगढ़ में आप आया,
रत्ना राईका को आन छुड़ाया ।।
🙏सुगना के पुत्र को जिवाया,
ऐसा पर्चा आप दिखाया ।।
🙏नेतलदे को रूप दिखाया,
छुट्टी कला का दर्शन कराया ।।
🙏बोहिता बनिया को मिश्र पठाया,
डूबत जहाज आप तराया ।।
🙏नुगरा को सुगरा कर दिया,
नाम बताये अमर कर दिया ।।
🙏ऋषियों को थे मान राखो,
उनकों जग में ऊंचा राखो ।।
🙏डालीबाई जन्मी नीचड़ा,
थाणे सिमरयां होई ऊंचड़ा ।।
🙏पिछली भक्ति रंग है लाई,
थाणे सिमरयां भव से पर होई ।।
🙏धारू रूपांदे थाणे ध्याया,
जग तारण हारे का दर्शन पाया ।।
🙏धेन दास का पुत्र जिवाया,
जुग में ऐसा खेल दिखाया ।।
🙏जैसल को शुद्ध बद्धि दीन्ही,
संग में तोलादे नार दीन्ही ।।
🙏ऊद्धा का अभिमान मिटाया,
देके भगवां संसा मिटाया ।।
🙏जाम्भा जी को पर्चा दीन्हो,
सरवर पानी खारो किन्हो ।।
🙏मक्का से पीर आया,
बर्तन अपना भूल आया ।।
🙏पीरां को पर्चा दिया,
बर्तन बांका में भोग दिया ।।
🙏रामा पीर जगत को तारो,
ऐसा ध्यान तुझ में म्हारों ।।
🙏कलियुग में परताप तुम्हारों,
अपना वचन आप सम्हारो ।।
🙏बकरी चरांतां हरजी को मिल गया,
देके ज्ञान निहाल कर गया ।।
🙏हरजी जमला थारा जगावे,
घर-घर जाके परचा सुनावे ।।
🙏कूड़ा विजय सिंह को आप डराओं,
हाकम हजारी से मनौती कराओ ।।
🙏निपुत्रां को पुत्र देवो,
कोढ़ियों को कलंक झड़ावो ।।
🙏राक्षस भूत निकट नहीं आवे,
रामदेव जब नाम सुनावे ।।
🙏जो सत्वार पाठ करे कोई,
छूटे दुखड़ा महासुख होई ।।
🙏जो बाचें श्री रामदेव चालीसा,
बांका संकट कटे हमेशा ।।
🙏प्रकाश पाण्डे शरण है थारी,
कृपा करो रामदेव अवतारी ।।
दोहा
स्वामी सकल ब्रह्माण्ड के, लियो कलयुग अवतार ।।
रामदेव स्वरूप अलख के, तारो जीव हे करतार ।।
(3)भजन, बाबा रामदेव जी
● खम्मा खम्मा हो म्हारा रुणिचे रा धनीयां
थाणे मनावे सारो माडवाड हो सारो गुजरात हो
अजमलजी रा कंवरां...खम्मा खम्मा हो म्हारा अजमालजी रा कंवरां
पेलो पेलो परचो लखा बिणजारा ने दीनो
कोई लूण री मीश्री बनाई धनियां अजमालजी रा कंवरां
दूजो दूजो परचो भोला बणिया ने दीनो
कोई डूबता री नाव तिराई धनियां अजमालजी रा कंवरां
तीजो तीजो परचो नेतल राणी ने दीनो
कोई होले स्युं भाण्डो जिवायो धनियां अजमालजी रा कंवरां
पांचवो तो परचो पांचु पीरां मे थे दीनो
कोई मक्का स्युं कटोरे,मंगाये धनियां अजमालजी रा कंवरां
कई आंधलियां ने आंख्यां दिया पांगलिया ने पाव जी
कई कोढियां का कोढ मिटाया धनियां अजमालजी रा कंवरां
और सवामणी को लगावां थारै भोग आज....मेरे....
भक्त लोक बाबा तेरा ध्यान लगावे
पूनम दिन को बाबा तेरा उत्सव मनावे
और लगी है भीड अपार
● रंग लागो जी रंग लागो
रंग लागो जी म्हाने कोड लागो रे
म्हाने जाणो रे रुणीचे वाले धाम म्हारा मनवा रंग लागो।
भादरवे री बीज चानणी
कोइ प्रकट़या दिन दयाल म्हारा मनवा रंग लागो ।
थोथी थलीया में बणयो देवरो
कोई ध्वजा रे फरुखे असमान महारा मनवा रंग लागो ।
मेवा मिठाई चढे चूरमो रे
बाबा चढे लीलड़ीया नारेल म्हारा मनवा रंग लागो ।
दुर देशां रा आवे जातरी
थारो मेलो रे भरीजे भरपुर म्हारा मनवा रंग लागो ।
कुशल रतन री बिनती रे
थारा मोइनुद्दीन जश गाय म्हारा मनवा रंग लागो ।
● बड़े रूणीचे धाम ओ बाज रया बाजा,
म्हारी अरज सुनो सरकार रामदेव राजा ।।
भक्ति कीनी अजमालजी ने भारी,
तुम प्रकट भये अवतार सुदर्शन धारी,
जय जय बोले नर नार होत आवाज ।। म्हारी ।।
किया बोहुता याद जहाज बाकी तारी,
चोपड़ रमता रमता भुजा पसारी,
राखी भक्त की लाज सार दिये काजा ।। म्हारी ।।
दलजी बनके माय विपद भई भारी,
दियो सेठ न माल याद करे थारी,
होय लीले असवार आये महाराजा ।। म्हारी ।।
लख बिणजारो भार से मिसरी लायो,
वो बोलो आपसे झूठ नहीं शरमायो,
मिसरी पलट भयो नून आप रखी लाजा ।। म्हारी ।।
चेताराम गुरुदेव भेद बतलाया,
प्रभु किजो मेरी सहाय आपको ध्याया,
कर जोड़करे परणाम द्वार है साजा ।। म्हारी ।।
● म्हाने जाणो रे भाया रुणीचा अर्जेन्ट
रामा धणी रो मेलो भरीजे परचा पड़े प्रजेंट म्हाने जाणो..
मेला मांही मोटा मोटा लागा है रेस्टोरेंट
दुर दुर सुं आया मानवी बैठा लगाय ने टेन्ट म्हाने जाणो..
छोटा मोटा आवे मानवी बणकर अप टू डेंट
रामा धणी ने जो सिमरे वो बणे इंटेलिजेंट म्हाने जाणो..
बुढा ठाडा सब थे चालो चालो स्टुडेंट
बाबा रे दरबार में जाके बण जावो सर्वेंट म्हाने जाणो..
बाबा रामसापीर भगता रो सही करे जजमेंट
नाम बाबा रो लेयने काम कर बाबो करेला डवलपमेंट
म्हाने जाणो रे भाया रुणीचा रे धाम
👣👣जय अजमल घर अवतार की👣👣
● सुगणा ऊभी डागलीये
बीरां म्हारा रामदेव,नेतल रा भरतार
आ सुगणां री वीणती ऐकर लेवण आया ।
सुगणा रे उभी डागलीये नेणां में ढलके नीर
लेवण आवो वीरा रामदेव थे हो जग मे पीर ।
आवण - जावण कह गया रे आई रे सावरिया री
तीज दर्शन प्यासी सुगणा बाई होवे है आधीन ।
बाहर वर्षा सुं पीवर सारुं लाग रही अंडीग
अजमल जी रा कंवर लाडला नैणा रे बरसे नीर।
राखड़ी पूनम री बीरा जग में अमर रीत
रीत नीभानी पड़सी थाने आय बंधावो धीर।
रामदेव जी रो ब्याव रचयो मेणा दे रे मन में प्रीत
लांछा बाई आई रे म्हारी सुगणा क्यो नही आई
सुगणा रे ऊभी डागलीये नेणां में ढलके नीर ।
आया रुणीचे सुगणा बाई लाया है महावीर
अन्यायी रो नाश होयो जद वे न्यायी री जीत
सुगणा रे ऊभी डागलीये नेणां में ढलके नीर ।
(4)🙏 श्री बाबा रामदेव जी का ईत्तीहास 🙏
👣 बोलो अजमल घर अवतार की जय👣
ग्यारहवी शताब्दी में दिल्ली के एक राजा थे श्री अनंगपाल जी। उनके दो पुत्रिया थी कमला बाई और रूप सुंदरी बाई।कमला बाई का विवाह अजमेर के राजा सोमेश्वर चोहान के साथ हुआ तथा रूप सुंदरी बाई का विवाह कनोज के राजा विजयपाल जी राठोर के साथ हुआ। महाराज अनंगपाल जी को कोई लड़का नहीं था। उन्होंने कमला बाई के पुत्र पृथ्वीराज चोहान को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
धीर सिंह जी तंवर महाराज अनंगपाल जी के चचेरे भाई थे। उन्होंने कुछ राज्य धीर सिंह जी तंवर को भी दिया। धीर सिंह जी तंवर को एक पुत्र था जिनका नाम रनसिंह जी तंवर था। रनसिंह जी तंवर को दो पुत्र थे एक का नाम धनरूप जी तंवर तथा दुसरे का नाम अजमल जी तंवर था।धनरूप जी तंवर को दो पुत्रिया थी लच्छा बाई एवं सुगना बाई। अजमल जी तंवर का विवाह जैसलमेर की राजकुमारी मैनादे के साथ हुआ। अजमल जी तंवर पोकरण के राजा बने। उनको कोई संतान नहीं थी । राजा अजमल जी द्वारिकाधीश जी के परमभक्त थे। वे हमेशा राज्य की सुख शांति की मनोकामना से द्वारिका जाते थे। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। वे राज्य में अच्छी बारिश की मनोकामना लेकर द्वारिका गए। कहते है भगवन द्वारिकाधीश की कृपा से उनके राज्य में बहुत अच्छी बारिश हुई। बारिश होने की अगली सुबह किसान अपने अपने खेतों को जा रहे थे , रस्ते में उनको राजा अजमल जी मिल गए। किसान वापस अपने घरों की तरफ जाने लगे। राजा ने वापस जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की महाराज आप निसंतान है इसलिए आपके सामने आने से अपशकुन मानकर वे वापस लौट रहे है। राजा को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ लेकिन अजमल जी ने किसानो को कुछा नहीं कहा। वे वापस घर आ गए और काफी निराश हुए। उन्होंने संतान प्राप्ति की मनोकामना से द्वारिकाधीश के दर्शन हेतु जाने का निश्चय किया। वे भगवन द्वारिकाधीश के प्रसाद हेतु लड्डू लेकर गए। मंदिर में पहुचकर राजा अजमल जी ने अत्यंत दुखी होकर भगवन द्वारिकाधीश की मूर्ति के सामने अपना सारा दुख कहा। अपना दुखड़ा भगवन को सुनाने के बाद राजा अजमल जी ने बड़ी याचक दृष्टि से भगवन की मूर्त को देखा।
भगवन की मूर्ति हसती हुई सी देखकर अजमल को गुस्सा आया और उन्होंने लड्डू फेका जो मूर्ति के सिर पर जा लगा। यह सब देखकर मंदिर का पुजारी अजमल जी पागल समझकर बोला की भगवन यहाँ नहीं है। भगवन तो समुद्र में सो रहे है । अगर आपको उनसे मिलना है तो समुद्र में जाओ। राजा अजमल जी बहुत दुखी होने के कारण पागलपन से समुद्र के किनारे गए और समुद्र में कूद गए। भगवन द्वारिकाधीश ने राजा अजमल को समुद्र में दर्शन दिए और कहा की वे खुद भादवा की दूज की दिन राजा अजमल के घर पुत्र रूप में आयेंगे राजा अजमल ने देखा की भगवन के सिर पर पट्टी बंधी थी। राजा अजमल जी ने पूछा भगवन आपको और ये चोट भगवन ने कहा मेरे एक भोले भक्त ने लड्डू की मारी। यह सुनकर अजमल जी शर्मिंदा हुए। राजा अजमल जी भगवन से बोले भगवन मुझ अज्ञानी को कैसे पता होगा की आप ही मेरे घर आये है । तो भगवन ने कहा जब मैं तेरे घर आउगा तो आँगन में कुमकुम के पैरों के निशान बन जायेंगे, पानी का दुध हो जायेगा, मंदिर का शंख अपने आप बजने लगेगा। राजा अजमल जी ख़ुशी ख़ुशी घर लौटे और रानी को सारी बात बताई। कुछ दिन बाद राजा अजमल के घर एक लड़का हुआ जिनका नाम विरमदेव रखा गया। भगवन के कहे अनुसार ही भादवा की दूज के दिन भगवन द्वारिकाधीश ने राजा अजमल के घर रामदेव के रूप में अवतार लिया।
श्री रामदेव जी का जन्म संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को राजा अजमल जी के घर अवतार हुआ। उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा। महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुमकुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा। उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया। बाल लीला में माता को परचा
भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की। एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे, माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं। प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था। उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई। माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है। माता ज्यों ही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है। उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं। जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है। उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है, माता मैणादे जीयू ही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती है उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे ओर रामदेव को गोदी मे खिलाने लगे। रामदेव जी ने ओर अन्य पर्चे दिए। जय अजमल घर अवतार की।
रामदेव जी ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की। डाली बाई नामक एक दलित कन्या का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया। यही कारण है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है। बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी की। यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त कराया। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ "मारवाड़ रा परगना री विगत" में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है- भैरव राक्षस ने पोकरण नगर आतंक से सुना कर दिया था लेकिन बाबा रामदेव के अदभूत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया। बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधि लेने के बाद कई चमत्कार दिखाए जिन्हें लोक भाषा में पर्चा देना कहते है। इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे पर्चों का जिक्र है। जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलौकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए। बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (कटोरे) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन कटोरे में खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो कटोरे जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली।
इस चमत्कार (पर्चा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार किया। आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव जी ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स. 1442 को जीवित समाधी ले ली। श्री रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधि ली। आज भी बाबा रामदेव के भक्त दूर- दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है। वे अपने भक्तों के दु:ख दूर करते हैं, मुराद पूरी करते हैं। हर साल लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता है। बोलो रुणीचा के श्याम की जय हो
(5)।।डाली बाई चालीसा।।
।।डाली बाई चालीसा।।
-जगजननी जगदीश्वरी,श्री राधा अवतार।
डाली बन कलिमल हरयो,कियो दलित उद्धार।।
मेघऋषि सायर सुता,शीलबन्त सुकमार।
श्री रामदेव की कृपा से,कियो प्रताप भव पार।।
।।चौपाई।।
जय जय माता डाली बाई ।
शायर मेघऋषि की जाई।।
आदि शक्ति राधा अवतारा।
कलयुग हरयो पाप का भारा।।
भँवरऋषि तपसी अति भारी।
इंद्रासन की करी तैयारी ।।
इन्द्र ने रम्भा पास बुलाई।
देऊ ऋषि का सत्य डिगाइ ।।
तपबल क्षीण इक कन्या जाइ।
स्वर्ग अप्सरा वापस धाई ।।
ऋषि कन्या डाली में बांधी।
भँवर ऋषि ने लीन्ह समाधी।।
कन्या कियो रूदन जब भारी।
आये रामदेव अवतारी ।।
कन्या बंधी डाली में पाई।
नाम धरयो प्रभु डाली बाई।।
निःसन्तान शायर को दाना।
डाली दीन्ही श्री भगवाना।।
शायर सन्त था दलित चमारा ।
द्वारिकाधीश का भक्त प्यारा।।
यासों घर में राधा आई ।
बनकर के श्री डाली बाई।।
गौ सेवा गौ चारण करती ।
रामदेव पद रज सिर धरती।।
पशु चराने वन में जाती ।
बीणा लेकर हरि गुण गाती।।
रामदेव जी की जप कर माला।
बस कर लीन्ह मैनादे लाला ।।
वनवासिन बन डाली बाई।
बन जीवों से प्रीत बढ़ाई ।।
मात पिता आज्ञा सिर धरती।
नित्य नेम प्रभु पूजा करती।।
सत्य नाम की करी कमायी।
आलस निद्रा भूख मिटाई।।
अलख उजाला आनंद भारी।
डाली नाचे दे दे तारी।।
रामदेव जी का जस गावे।
हरि चर्चा बिन कुछ न सुहावे।।
वन वन डाली विचरण करती।
वन जीवों की पीड़ा हरती।।
संसारी विष मन से भागा ।
हरि चिन्तन में आनन्द जागा।।
दिन भर डाली गांये चराती।
शामको सन्ध्या प्रभु संग करती
जुमा जागरण कीर्तन गाते ।
रामा डाली घर घर जाते ।।
डाली राम में प्रेम अगाधा ।
ज्यो प्रेमी थे कृष्ण अरु राधा।।
राधे-श्याम मधुबन में विचरते।
डाली-राम घर घर दुःख हरते।।
इक दिन रामदेव अवतारी ।
निज चिन्तन में मगन थे भारी।
काल पुरूष का हुआ इशारा।
पूर्ण हुआ सब काम तुम्हारा।।
हँस कर सभा में बोले रामा।
अब जाऊंगा में निज धामा।।
जियत समाधि करूँ प्रस्थाना।
सभा में बोले दया निधाना।।
सब सज्जन मिल कीन् विचारा
पँहुचे राम सरोवर पारा ।।
बजे रूणीचा ढोल नगारा।
मरुधर में मच्यो हाहाकारा ।।
नर - नारी रोते चिल्लाते।
हाय पीर कह कह बिलखाते ।।
डाली बोली हमें बताओ ।
कहाँ बिलखते तुम सब जाओ।
सब बोले तू डाली आन्धी।
आज पीर जी लेय समाधी।।
डाली रोवे दे डिडकारी।
कैसी किस्मत आज हमारी।।
डाली लीन्हे पशु बुलाई।
रामदेव जी की सपथ दिलाई।।
यही आपसे अंतिम कहना ।
शाम समय अपने घर जाना।।
आज रखियो लाज हमारी।
लेउ आखिरी राम जुहारी।।
भाजी दौड़ी डाली धाई ।
रामसरोवर पंहुची जाई ।।
मेरे प्रभु मै तेरी पुजारिन ।
अधम जाति में नाथ दुखारिन।
मेरी गलती मुझे बताओ।
क्यों ऐसा अन्याय कराओ।।
कुछ तो अपने मन में सोधो।
मेरी समाधि कीं कर खोदो।।
प्रभु अवतारी कृपा कीजे ।
पहले मुझको जाने दीजे।।
हँस कर बोले प्रभु अवतारी।
मैं जानू सब बात तुम्हारी ।।
यह संसार सत्य न जाने।
तेरी सत्ता को न माने ।।
इनको तुम प्रमाण दिखाओ।
दे प्रमाण निज लोक सीधाओ।
डाली कहे सुनो भगवाना।
मेरी समाधी का सुनो प्रमाना।।
कंगन चुटिया चूड़ी डोरी ।
है पहचान समाधी मोरी।।
पाट पीताम्बर शंख कटारी।
निकले तो समाधि हो थारी।।
सत्य वचन डाली का पाया।
रामधणी का मन हरषाया।।
डाली-राम की साँची प्रीती।
हारयो ज्ञान अरु भक्ति जीती।।
नोमी तिथि अरु भादव मासा।
डाली कियो समाधी वासा।।
पुष्पांजलि दे कीन्ह बिदाई।
डाली प्रभु के लोक सिधाई।।
प्रथम जोत डाली की करही
👣पीछम धरा सुं मारा पीरजी पधारीया
घर अजमल अवतार लीयो ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हर री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣वीणा रे तंदूरो धणी रे नोबत बाजे
झालर री झणकार पड़े ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हर री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 धारत मिठाई हरी चढे रे चुरमा
धुपों की महकार पड़े ।
👣 लाछा सुगना बाई करे हर री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 गंगा यमुना बहे रे सरस्वती
रामदेव बाबा स्नान करे ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हरी आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 दूरां रे देशों रा बाबा आवे जातरु
दरगाहआगे बापजी ने नमन करे ।
👣 लांछा सुगना बाई करे हरी री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
👣 हरी शरणों में हरजी भाटी बोले
नवों रे खंडों मे निशान धुरें ।
👣लांछा सुगना बाई करे हरी री आरती
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
{ आरती 2 }
★जय अजमल लाला प्रभु, जय अजमल लाला ।
★भक्त काज कलयुग में लीनो अवतारा, जय अजमल लाला ।
★ अश्वन की अवसारी शोभीत , केशरीया जामा,जय अजमल लाला ।
★शीस तुर्रा हद शोभीत हाथ लीया भाला ,जय अजमल लाला ।
★डुब्त जहाज तीराई भैरव दैतव को मारा ,जय अजमल लाला ।
★कृष्णकला भयभजन राम रूणेचा वाला, जय अजमल लाला ।
★अंधन को प्रभु नेत्र देत है, सुख संपती माया ,जय अजमल लाला ।
★कानन कुंडल झील मील गल पुष्पनमाल ,जय अजमल लाला ।
★कोढी जय करूणा कर आवे, होंय दुखीत काया, जय अजमल लाला ।
★शरणागत प्रभु तोरी भक्तन सुन दाया ,जय अजमल लाला ।
★आरती रामदेव जी की नर नारी गावे ,जय अजमल लाला ।
★कटे पाप जन्म-जन्म के मोक्षा पद पावे ,जय अजमल लाला ।
★जय अजमल लाला प्रभु ,जय अजमल लाला ।
★भक्त काज कलयुग में लीनो अवतारा , जय अजमल लाला ।
(2)चालीसा बाबा रामदेव जी
🙏बाबा रामदेव चालीसा 1🙏
।। दोहा ।।
जय जय प्रभु रामदेव, नमो नमो हरबार ।
लाज राखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार ।।
दीन बन्धु किरपा करोए, मोर हरो संताप ।
स्वामी तीनों लोक केए हरो क्लेश, अरू पाप ।।
👣जय जय रामदेव जयकारी ।
👣तुम हो सुख सम्पत्ति के दाता ।
👣बाल रूप अजमल के धारा ।
👣दुखियों के तुम हो रखवारे ।
👣आपहि रामदेव प्रभु स्वामी ।
👣तुम हो भक्तों के भय हारी ।
👣जग में नाम तुम्हारा भारी ।
👣दु:ख भंजन है नाम तुम्हारा ।
👣सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी ।
👣कलियुग में प्रभु आप पधारे ।
👣तुम हो भक्त जनों के रक्षक ।
👣सोहे हाथ आपके भाला ।
👣आप सुशोभित अश्व सवारी ।
👣नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे ।
👣तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे ।
👣लीला अपरम्पार तुम्हारी ।
👣निर्बुद्धि भी विद्या पावे ।
👣पुत्र हीन सु सन्तति पावे ।
👣दुर्जन दुष्ट निकट नहिं आवें ।
👣जो कोई पुत्र हीन नर ध्यावै ।
👣तुमने डूबत नाव उबारी ।
👣पीरों को परचा तुम दीना ।
👣तुमने पुत्र दिया दलजी को ।
👣सुगना का दु:ख तुम हर लीना ।
👣जो कोई तुमको सुमिरन करते ।
👣जो कोई टेर लगाता तेरी ।
👣विविध रूप धर भैरव मारा ।
👣जो कोई शरण आपकी आवे ।
👣नयनहीन के तुम रखवारे ।
👣नित्य पढ़े चालीसा कोई ।
👣जो कोई भक्ति भाव से ध्याते
👣मैं भी सेवक हूँ प्रभु तेरा ।
👣जय जय हो प्रभू लीला तेरी ।
👣करता नन्द विनय प्रभु तेरी ।
👣विपदा हरो तुम आन हमारी ।।
👣भक्तजनों के भाग्य विधाता ।।
👣बनकर पुत्र सभी दु:ख हारा ।।
👣लागत आप उन्हीं को प्यारे ।।
👣घट घट के तुम अन्तरयामी ।।
👣मेरी भी सुध लो अवतारी ।।
👣भजते घर घर सब नर नारी ।।
👣जानत आज सकल संसारा ।।
👣तुम हो जग के अन्तरयामी ।।
👣अंश एक पर नाम है न्यारे ।।
👣पापी दुष्ट जनों के भक्षक ।।
👣गले में सोहे सुन्दर माला ।।
👣करो कृपा मुझा पर अवतारी ।।
👣पाप अविद्या सब दुख नाशे ।।
👣नित्य बसो प्रभु हिये हमारे ।।
👣सुख दाता भय भंजन हारी ।।
👣रोगी रोग बिना हो जावे ।।
👣सुयश ज्ञान करि मोद मनावे ।।
👣भूत पिशाच सभी डर जावें ।।
👣निश्चय ही नर व सुत पावैं ।।
👣मिसरी किया नमक को सारी ।।
👣नीर सरोवर खारा कीना ।।
👣ज्ञान दिया तुमने हरजी को ।।
👣पुत्र मरा सर जीवन कीना ।।
👣उनके हित पग आगे धरते ।।
👣करते आप तनिक ना देरी ।।
👣जांभा को परचा दे डाला ।।
👣मन इच्छा पूरण हो जावे ।।
👣कोढ़ी पुंगल के दु:ख टारे ।।
👣सुख सम्पत्ति वाके घर होई ।।
👣मन वांछित फल वो नर पाते ।।
👣काटो जनम मरण का फेरा ।।
👣पार करो तुम नैया मेरी ।।
👣करहु नाथ तुम मम उर डेरी ।।
।। दोहा ।।
भक्त समझ किरपा करी नाथ पधारे दौड़ ।
विनती है प्रभु आपसे नन्द करे कर जोड़ ।।
यह चालीसा नित्य उठ पाठ करे जो कोय ।
मन वांछित फल पाय वो सुख सम्पत्ति घर होय ।।
[🙏बाबा रामदेव चालीसा 2🙏]
🙏अजमल सुत रामदेव नामा,
जग में आए जीव तारण के कामा ।
🙏शीश तुरां गल मोतियन माला,
नीले की असवारी केसरिया जामा ।।
🙏आप प्रभु बोद्धित्वा दियो,
माघ कृष्णा शुभ दिन शनिवार ।
🙏कलियुग सम्वत् 2056,
चतुर्भुज रूप में, दिया ज्ञान का सार ।।
🙏जय श्री रामदेव अवतारी,
विपद हरो प्रभु आन हमारी ।।
🙏भावदा शुद दूज को आया,
अजमल जी से कौल निभाया ।।
🙏अजमल जी को परचो दियो,
जग में नाम अमर है कियो ।।
🙏द्वारका छोड़ मरूधर में आया,
भक्ता का है बन्द छुड़ाया ।।
🙏माता मैनादे की शंका मिटार्इ,
पल में दूध पे कला बरताई ।।
🙏कपड़ा को घोड़ो है उड़ायो,
दर्जी को है पर्चों दियो ।।
🙏तीजी कला यूं बरताई,
जग में शक्ति आप दिखाई ।।
🙏स्वारथिया को आप जिवाओ,
चौथी कला को यूं बरताओं ।।
🙏मिश्री को है नमक बनाया,
लखी बनजारा को पर्चों दिखाया ।।
🙏मन शुद्ध कर भक्ति बतलाई,
इन विध पांचु कला बरताई ।।
🙏मोहम्मद को है पर्चों दिन्हो,
लंगड़ा से अच्छा है किन्हो ।।
🙏विकट रूप धर भैरों मारा,
साधु रूप धर भक्त तारा ।।
🙏भैरों को थे नीचे दबाया,
जन-जन को सुखी कर दिया ।।
🙏बालीनाथ का बचन पुराया,
आप चतुर्भुज रूप दिखाया ।।
🙏पुगलगढ़ में आप आया,
रत्ना राईका को आन छुड़ाया ।।
🙏सुगना के पुत्र को जिवाया,
ऐसा पर्चा आप दिखाया ।।
🙏नेतलदे को रूप दिखाया,
छुट्टी कला का दर्शन कराया ।।
🙏बोहिता बनिया को मिश्र पठाया,
डूबत जहाज आप तराया ।।
🙏नुगरा को सुगरा कर दिया,
नाम बताये अमर कर दिया ।।
🙏ऋषियों को थे मान राखो,
उनकों जग में ऊंचा राखो ।।
🙏डालीबाई जन्मी नीचड़ा,
थाणे सिमरयां होई ऊंचड़ा ।।
🙏पिछली भक्ति रंग है लाई,
थाणे सिमरयां भव से पर होई ।।
🙏धारू रूपांदे थाणे ध्याया,
जग तारण हारे का दर्शन पाया ।।
🙏धेन दास का पुत्र जिवाया,
जुग में ऐसा खेल दिखाया ।।
🙏जैसल को शुद्ध बद्धि दीन्ही,
संग में तोलादे नार दीन्ही ।।
🙏ऊद्धा का अभिमान मिटाया,
देके भगवां संसा मिटाया ।।
🙏जाम्भा जी को पर्चा दीन्हो,
सरवर पानी खारो किन्हो ।।
🙏मक्का से पीर आया,
बर्तन अपना भूल आया ।।
🙏पीरां को पर्चा दिया,
बर्तन बांका में भोग दिया ।।
🙏रामा पीर जगत को तारो,
ऐसा ध्यान तुझ में म्हारों ।।
🙏कलियुग में परताप तुम्हारों,
अपना वचन आप सम्हारो ।।
🙏बकरी चरांतां हरजी को मिल गया,
देके ज्ञान निहाल कर गया ।।
🙏हरजी जमला थारा जगावे,
घर-घर जाके परचा सुनावे ।।
🙏कूड़ा विजय सिंह को आप डराओं,
हाकम हजारी से मनौती कराओ ।।
🙏निपुत्रां को पुत्र देवो,
कोढ़ियों को कलंक झड़ावो ।।
🙏राक्षस भूत निकट नहीं आवे,
रामदेव जब नाम सुनावे ।।
🙏जो सत्वार पाठ करे कोई,
छूटे दुखड़ा महासुख होई ।।
🙏जो बाचें श्री रामदेव चालीसा,
बांका संकट कटे हमेशा ।।
🙏प्रकाश पाण्डे शरण है थारी,
कृपा करो रामदेव अवतारी ।।
दोहा
स्वामी सकल ब्रह्माण्ड के, लियो कलयुग अवतार ।।
रामदेव स्वरूप अलख के, तारो जीव हे करतार ।।
(3)भजन, बाबा रामदेव जी
● खम्मा खम्मा हो म्हारा रुणिचे रा धनीयां
थाणे मनावे सारो माडवाड हो सारो गुजरात हो
अजमलजी रा कंवरां...खम्मा खम्मा हो म्हारा अजमालजी रा कंवरां
पेलो पेलो परचो लखा बिणजारा ने दीनो
कोई लूण री मीश्री बनाई धनियां अजमालजी रा कंवरां
दूजो दूजो परचो भोला बणिया ने दीनो
कोई डूबता री नाव तिराई धनियां अजमालजी रा कंवरां
तीजो तीजो परचो नेतल राणी ने दीनो
कोई होले स्युं भाण्डो जिवायो धनियां अजमालजी रा कंवरां
पांचवो तो परचो पांचु पीरां मे थे दीनो
कोई मक्का स्युं कटोरे,मंगाये धनियां अजमालजी रा कंवरां
कई आंधलियां ने आंख्यां दिया पांगलिया ने पाव जी
कई कोढियां का कोढ मिटाया धनियां अजमालजी रा कंवरां
और सवामणी को लगावां थारै भोग आज....मेरे....
भक्त लोक बाबा तेरा ध्यान लगावे
पूनम दिन को बाबा तेरा उत्सव मनावे
और लगी है भीड अपार
● रंग लागो जी रंग लागो
रंग लागो जी म्हाने कोड लागो रे
म्हाने जाणो रे रुणीचे वाले धाम म्हारा मनवा रंग लागो।
भादरवे री बीज चानणी
कोइ प्रकट़या दिन दयाल म्हारा मनवा रंग लागो ।
थोथी थलीया में बणयो देवरो
कोई ध्वजा रे फरुखे असमान महारा मनवा रंग लागो ।
मेवा मिठाई चढे चूरमो रे
बाबा चढे लीलड़ीया नारेल म्हारा मनवा रंग लागो ।
दुर देशां रा आवे जातरी
थारो मेलो रे भरीजे भरपुर म्हारा मनवा रंग लागो ।
कुशल रतन री बिनती रे
थारा मोइनुद्दीन जश गाय म्हारा मनवा रंग लागो ।
● बड़े रूणीचे धाम ओ बाज रया बाजा,
म्हारी अरज सुनो सरकार रामदेव राजा ।।
भक्ति कीनी अजमालजी ने भारी,
तुम प्रकट भये अवतार सुदर्शन धारी,
जय जय बोले नर नार होत आवाज ।। म्हारी ।।
किया बोहुता याद जहाज बाकी तारी,
चोपड़ रमता रमता भुजा पसारी,
राखी भक्त की लाज सार दिये काजा ।। म्हारी ।।
दलजी बनके माय विपद भई भारी,
दियो सेठ न माल याद करे थारी,
होय लीले असवार आये महाराजा ।। म्हारी ।।
लख बिणजारो भार से मिसरी लायो,
वो बोलो आपसे झूठ नहीं शरमायो,
मिसरी पलट भयो नून आप रखी लाजा ।। म्हारी ।।
चेताराम गुरुदेव भेद बतलाया,
प्रभु किजो मेरी सहाय आपको ध्याया,
कर जोड़करे परणाम द्वार है साजा ।। म्हारी ।।
● म्हाने जाणो रे भाया रुणीचा अर्जेन्ट
रामा धणी रो मेलो भरीजे परचा पड़े प्रजेंट म्हाने जाणो..
मेला मांही मोटा मोटा लागा है रेस्टोरेंट
दुर दुर सुं आया मानवी बैठा लगाय ने टेन्ट म्हाने जाणो..
छोटा मोटा आवे मानवी बणकर अप टू डेंट
रामा धणी ने जो सिमरे वो बणे इंटेलिजेंट म्हाने जाणो..
बुढा ठाडा सब थे चालो चालो स्टुडेंट
बाबा रे दरबार में जाके बण जावो सर्वेंट म्हाने जाणो..
बाबा रामसापीर भगता रो सही करे जजमेंट
नाम बाबा रो लेयने काम कर बाबो करेला डवलपमेंट
म्हाने जाणो रे भाया रुणीचा रे धाम
👣👣जय अजमल घर अवतार की👣👣
● सुगणा ऊभी डागलीये
बीरां म्हारा रामदेव,नेतल रा भरतार
आ सुगणां री वीणती ऐकर लेवण आया ।
सुगणा रे उभी डागलीये नेणां में ढलके नीर
लेवण आवो वीरा रामदेव थे हो जग मे पीर ।
आवण - जावण कह गया रे आई रे सावरिया री
तीज दर्शन प्यासी सुगणा बाई होवे है आधीन ।
बाहर वर्षा सुं पीवर सारुं लाग रही अंडीग
अजमल जी रा कंवर लाडला नैणा रे बरसे नीर।
राखड़ी पूनम री बीरा जग में अमर रीत
रीत नीभानी पड़सी थाने आय बंधावो धीर।
रामदेव जी रो ब्याव रचयो मेणा दे रे मन में प्रीत
लांछा बाई आई रे म्हारी सुगणा क्यो नही आई
सुगणा रे ऊभी डागलीये नेणां में ढलके नीर ।
आया रुणीचे सुगणा बाई लाया है महावीर
अन्यायी रो नाश होयो जद वे न्यायी री जीत
सुगणा रे ऊभी डागलीये नेणां में ढलके नीर ।
(4)🙏 श्री बाबा रामदेव जी का ईत्तीहास 🙏
👣 बोलो अजमल घर अवतार की जय👣
ग्यारहवी शताब्दी में दिल्ली के एक राजा थे श्री अनंगपाल जी। उनके दो पुत्रिया थी कमला बाई और रूप सुंदरी बाई।कमला बाई का विवाह अजमेर के राजा सोमेश्वर चोहान के साथ हुआ तथा रूप सुंदरी बाई का विवाह कनोज के राजा विजयपाल जी राठोर के साथ हुआ। महाराज अनंगपाल जी को कोई लड़का नहीं था। उन्होंने कमला बाई के पुत्र पृथ्वीराज चोहान को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
धीर सिंह जी तंवर महाराज अनंगपाल जी के चचेरे भाई थे। उन्होंने कुछ राज्य धीर सिंह जी तंवर को भी दिया। धीर सिंह जी तंवर को एक पुत्र था जिनका नाम रनसिंह जी तंवर था। रनसिंह जी तंवर को दो पुत्र थे एक का नाम धनरूप जी तंवर तथा दुसरे का नाम अजमल जी तंवर था।धनरूप जी तंवर को दो पुत्रिया थी लच्छा बाई एवं सुगना बाई। अजमल जी तंवर का विवाह जैसलमेर की राजकुमारी मैनादे के साथ हुआ। अजमल जी तंवर पोकरण के राजा बने। उनको कोई संतान नहीं थी । राजा अजमल जी द्वारिकाधीश जी के परमभक्त थे। वे हमेशा राज्य की सुख शांति की मनोकामना से द्वारिका जाते थे। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। वे राज्य में अच्छी बारिश की मनोकामना लेकर द्वारिका गए। कहते है भगवन द्वारिकाधीश की कृपा से उनके राज्य में बहुत अच्छी बारिश हुई। बारिश होने की अगली सुबह किसान अपने अपने खेतों को जा रहे थे , रस्ते में उनको राजा अजमल जी मिल गए। किसान वापस अपने घरों की तरफ जाने लगे। राजा ने वापस जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की महाराज आप निसंतान है इसलिए आपके सामने आने से अपशकुन मानकर वे वापस लौट रहे है। राजा को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ लेकिन अजमल जी ने किसानो को कुछा नहीं कहा। वे वापस घर आ गए और काफी निराश हुए। उन्होंने संतान प्राप्ति की मनोकामना से द्वारिकाधीश के दर्शन हेतु जाने का निश्चय किया। वे भगवन द्वारिकाधीश के प्रसाद हेतु लड्डू लेकर गए। मंदिर में पहुचकर राजा अजमल जी ने अत्यंत दुखी होकर भगवन द्वारिकाधीश की मूर्ति के सामने अपना सारा दुख कहा। अपना दुखड़ा भगवन को सुनाने के बाद राजा अजमल जी ने बड़ी याचक दृष्टि से भगवन की मूर्त को देखा।
भगवन की मूर्ति हसती हुई सी देखकर अजमल को गुस्सा आया और उन्होंने लड्डू फेका जो मूर्ति के सिर पर जा लगा। यह सब देखकर मंदिर का पुजारी अजमल जी पागल समझकर बोला की भगवन यहाँ नहीं है। भगवन तो समुद्र में सो रहे है । अगर आपको उनसे मिलना है तो समुद्र में जाओ। राजा अजमल जी बहुत दुखी होने के कारण पागलपन से समुद्र के किनारे गए और समुद्र में कूद गए। भगवन द्वारिकाधीश ने राजा अजमल को समुद्र में दर्शन दिए और कहा की वे खुद भादवा की दूज की दिन राजा अजमल के घर पुत्र रूप में आयेंगे राजा अजमल ने देखा की भगवन के सिर पर पट्टी बंधी थी। राजा अजमल जी ने पूछा भगवन आपको और ये चोट भगवन ने कहा मेरे एक भोले भक्त ने लड्डू की मारी। यह सुनकर अजमल जी शर्मिंदा हुए। राजा अजमल जी भगवन से बोले भगवन मुझ अज्ञानी को कैसे पता होगा की आप ही मेरे घर आये है । तो भगवन ने कहा जब मैं तेरे घर आउगा तो आँगन में कुमकुम के पैरों के निशान बन जायेंगे, पानी का दुध हो जायेगा, मंदिर का शंख अपने आप बजने लगेगा। राजा अजमल जी ख़ुशी ख़ुशी घर लौटे और रानी को सारी बात बताई। कुछ दिन बाद राजा अजमल के घर एक लड़का हुआ जिनका नाम विरमदेव रखा गया। भगवन के कहे अनुसार ही भादवा की दूज के दिन भगवन द्वारिकाधीश ने राजा अजमल के घर रामदेव के रूप में अवतार लिया।
श्री रामदेव जी का जन्म संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को राजा अजमल जी के घर अवतार हुआ। उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा। महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुमकुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा। उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया। बाल लीला में माता को परचा
भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की। एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे, माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं। प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था। उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई। माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है। माता ज्यों ही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है। उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं। जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है। उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है, माता मैणादे जीयू ही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती है उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे ओर रामदेव को गोदी मे खिलाने लगे। रामदेव जी ने ओर अन्य पर्चे दिए। जय अजमल घर अवतार की।
रामदेव जी ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की। डाली बाई नामक एक दलित कन्या का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया। यही कारण है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है। बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी की। यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त कराया। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ "मारवाड़ रा परगना री विगत" में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है- भैरव राक्षस ने पोकरण नगर आतंक से सुना कर दिया था लेकिन बाबा रामदेव के अदभूत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया। बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधि लेने के बाद कई चमत्कार दिखाए जिन्हें लोक भाषा में पर्चा देना कहते है। इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे पर्चों का जिक्र है। जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलौकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए। बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (कटोरे) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन कटोरे में खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो कटोरे जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली।
इस चमत्कार (पर्चा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार किया। आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव जी ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स. 1442 को जीवित समाधी ले ली। श्री रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधि ली। आज भी बाबा रामदेव के भक्त दूर- दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है। वे अपने भक्तों के दु:ख दूर करते हैं, मुराद पूरी करते हैं। हर साल लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता है। बोलो रुणीचा के श्याम की जय हो
(5)।।डाली बाई चालीसा।।
।।डाली बाई चालीसा।।
-जगजननी जगदीश्वरी,श्री राधा अवतार।
डाली बन कलिमल हरयो,कियो दलित उद्धार।।
मेघऋषि सायर सुता,शीलबन्त सुकमार।
श्री रामदेव की कृपा से,कियो प्रताप भव पार।।
।।चौपाई।।
जय जय माता डाली बाई ।
शायर मेघऋषि की जाई।।
आदि शक्ति राधा अवतारा।
कलयुग हरयो पाप का भारा।।
भँवरऋषि तपसी अति भारी।
इंद्रासन की करी तैयारी ।।
इन्द्र ने रम्भा पास बुलाई।
देऊ ऋषि का सत्य डिगाइ ।।
तपबल क्षीण इक कन्या जाइ।
स्वर्ग अप्सरा वापस धाई ।।
ऋषि कन्या डाली में बांधी।
भँवर ऋषि ने लीन्ह समाधी।।
कन्या कियो रूदन जब भारी।
आये रामदेव अवतारी ।।
कन्या बंधी डाली में पाई।
नाम धरयो प्रभु डाली बाई।।
निःसन्तान शायर को दाना।
डाली दीन्ही श्री भगवाना।।
शायर सन्त था दलित चमारा ।
द्वारिकाधीश का भक्त प्यारा।।
यासों घर में राधा आई ।
बनकर के श्री डाली बाई।।
गौ सेवा गौ चारण करती ।
रामदेव पद रज सिर धरती।।
पशु चराने वन में जाती ।
बीणा लेकर हरि गुण गाती।।
रामदेव जी की जप कर माला।
बस कर लीन्ह मैनादे लाला ।।
वनवासिन बन डाली बाई।
बन जीवों से प्रीत बढ़ाई ।।
मात पिता आज्ञा सिर धरती।
नित्य नेम प्रभु पूजा करती।।
सत्य नाम की करी कमायी।
आलस निद्रा भूख मिटाई।।
अलख उजाला आनंद भारी।
डाली नाचे दे दे तारी।।
रामदेव जी का जस गावे।
हरि चर्चा बिन कुछ न सुहावे।।
वन वन डाली विचरण करती।
वन जीवों की पीड़ा हरती।।
संसारी विष मन से भागा ।
हरि चिन्तन में आनन्द जागा।।
दिन भर डाली गांये चराती।
शामको सन्ध्या प्रभु संग करती
जुमा जागरण कीर्तन गाते ।
रामा डाली घर घर जाते ।।
डाली राम में प्रेम अगाधा ।
ज्यो प्रेमी थे कृष्ण अरु राधा।।
राधे-श्याम मधुबन में विचरते।
डाली-राम घर घर दुःख हरते।।
इक दिन रामदेव अवतारी ।
निज चिन्तन में मगन थे भारी।
काल पुरूष का हुआ इशारा।
पूर्ण हुआ सब काम तुम्हारा।।
हँस कर सभा में बोले रामा।
अब जाऊंगा में निज धामा।।
जियत समाधि करूँ प्रस्थाना।
सभा में बोले दया निधाना।।
सब सज्जन मिल कीन् विचारा
पँहुचे राम सरोवर पारा ।।
बजे रूणीचा ढोल नगारा।
मरुधर में मच्यो हाहाकारा ।।
नर - नारी रोते चिल्लाते।
हाय पीर कह कह बिलखाते ।।
डाली बोली हमें बताओ ।
कहाँ बिलखते तुम सब जाओ।
सब बोले तू डाली आन्धी।
आज पीर जी लेय समाधी।।
डाली रोवे दे डिडकारी।
कैसी किस्मत आज हमारी।।
डाली लीन्हे पशु बुलाई।
रामदेव जी की सपथ दिलाई।।
यही आपसे अंतिम कहना ।
शाम समय अपने घर जाना।।
आज रखियो लाज हमारी।
लेउ आखिरी राम जुहारी।।
भाजी दौड़ी डाली धाई ।
रामसरोवर पंहुची जाई ।।
मेरे प्रभु मै तेरी पुजारिन ।
अधम जाति में नाथ दुखारिन।
मेरी गलती मुझे बताओ।
क्यों ऐसा अन्याय कराओ।।
कुछ तो अपने मन में सोधो।
मेरी समाधि कीं कर खोदो।।
प्रभु अवतारी कृपा कीजे ।
पहले मुझको जाने दीजे।।
हँस कर बोले प्रभु अवतारी।
मैं जानू सब बात तुम्हारी ।।
यह संसार सत्य न जाने।
तेरी सत्ता को न माने ।।
इनको तुम प्रमाण दिखाओ।
दे प्रमाण निज लोक सीधाओ।
डाली कहे सुनो भगवाना।
मेरी समाधी का सुनो प्रमाना।।
कंगन चुटिया चूड़ी डोरी ।
है पहचान समाधी मोरी।।
पाट पीताम्बर शंख कटारी।
निकले तो समाधि हो थारी।।
सत्य वचन डाली का पाया।
रामधणी का मन हरषाया।।
डाली-राम की साँची प्रीती।
हारयो ज्ञान अरु भक्ति जीती।।
नोमी तिथि अरु भादव मासा।
डाली कियो समाधी वासा।।
पुष्पांजलि दे कीन्ह बिदाई।
डाली प्रभु के लोक सिधाई।।
प्रथम जोत डाली की करही

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